ताऊ देवी लाल Tau Devi Lal : हरियाणा के मजबूत स्तंभ और भारत के उप प्रधानमंत्री
ताऊ देवी लाल Tau Devi Lal का राजनीतिक सफर लंबा और प्रभावशाली रहा। आजादी के बाद जब 1952 में पहले विधानसभा चुनाव हुए, तब हरियाणा पंजाब का हिस्सा था।
6 अप्रैल 2001 को भारत ने अपने एक महान नेता और हरियाणा के सशक्त राजनीतिक व्यक्तित्व चौधरी देवी लाल Tau Devi Lal को खो दिया। हरियाणा के “ताऊ” के रूप में प्रसिद्ध, देवी लाल Tau Devi Lal का जन्म 25 सितंबर 1914 को हरियाणा के हिसार जिले के तेजाखेड़ा गांव में हुआ था। वे भारतीय राजनीति के उन चुनिंदा नेताओं में से थे जो स्वतंत्रता संग्राम के समय और आजादी के बाद भी राजनीति में सक्रिय रहे। 19 अक्टूबर 1989 से 21 जून 1991 तक वे भारत के उप प्रधानमंत्री रहे और उन्होंने दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं। आज के दौर में भी उनकी राजनीतिक विरासत हरियाणा की राजनीति में जीवित है।
ताऊ देवी लाल का राजनीतिक सफर
देवी लाल Tau Devi Lal का राजनीतिक सफर लंबा और प्रभावशाली रहा। आजादी के बाद जब 1952 में पहले विधानसभा चुनाव हुए, तब हरियाणा पंजाब का हिस्सा था। उन्होंने पहली बार विधायक का चुनाव जीता और 1957 व 1962 में पुनः विधानसभा के सदस्य बने। उनकी राजनीतिक कुशलता और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें एक मजबूत जननेता के रूप में स्थापित किया।
देवी लाल का जीवन हरियाणा के किसानों और गरीबों के उत्थान के प्रति समर्पित था। वे हमेशा हरियाणा के किसानों के अधिकारों और उनके हितों की लड़ाई में अग्रणी रहे। उनका सपना था कि किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिले और हरियाणा के ग्रामीण इलाकों का विकास हो। यही कारण था कि वे हरियाणा की राजनीति में ‘ताऊ’ के नाम से जाने जाते थे, जो उनके स्नेह और सम्मान का प्रतीक था।
उनकी राजनीतिक यात्रा में 1987 का दौर विशेष रूप से महत्वपूर्ण था। इस समय वे हरियाणा के मुख्यमंत्री बने और प्रदेश के विकास में अहम भूमिका निभाई। उनके कार्यकाल में हरियाणा में कृषि और ग्रामीण विकास को प्राथमिकता दी गई। उन्होंने ग्रामीण इलाकों में सड़कें बनवाईं, नहरों का विस्तार किया और किसानों के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं।
1989 में ताऊ देवी लाल उप प्रधानमंत्री बने
1989 में जब वे भारत के उप प्रधानमंत्री बने, तो देश की राजनीति में उनका प्रभाव और भी बढ़ गया। हालांकि यह दौर उनके लिए कई चुनौतियों से भरा था। राजनीति में कई विरोधी रहे, लेकिन देवी लाल का नाम हमेशा किसानों और गरीबों के उत्थान के लिए याद किया जाएगा।
उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी राजनीति से जुड़ी रही। उनके चार पुत्र और एक पुत्री थी, जिनमें से उनके सबसे बड़े बेटे ओम प्रकाश चौटाला हरियाणा की राजनीति में एक प्रमुख चेहरा बने। उनके पोते दुष्यंत चौटाला, जो वर्तमान समय में हरियाणा के उप मुख्यमंत्री हैं, उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। देवी लाल के परिवार के अन्य सदस्य भी हरियाणा की राजनीति में सक्रिय हैं।
हालांकि, 1990 के बाद के साल देवी लाल के राजनीतिक करियर के लिए संघर्षपूर्ण रहे। तीन लोकसभा चुनावों (1991, 1996, 1998) में उन्हें हरियाणा की रोहतक सीट से भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथों हार का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद, उनके पुत्र ओम प्रकाश चौटाला ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनवाया और 2001 में राज्यसभा सदस्य रहते हुए ही उनका निधन हो गया।
देवी लाल न 1989 में प्रधानमंत्री पद को ठुकराना
देवी लाल की राजनीतिक यात्रा में कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं भी हैं, जैसे कि 1989 में प्रधानमंत्री पद को ठुकराना। जब जनता दल के सांसदों ने उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए चुना था, तब उन्होंने यह जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया और यह पद विश्वनाथ प्रताप सिंह को दे दिया। यह निर्णय उनके राजनीतिक जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
हरियाणा की राजनीति में देवी लाल का कद इतना बड़ा था कि वे कई बार भजनलाल और बंसीलाल जैसे प्रमुख नेताओं से भी टकराए। 1972 में जब उन्होंने आदमपुर और तोशाम दोनों सीटों से चुनाव लड़ा, तो उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस हार के बावजूद, वे हरियाणा की राजनीति में अपनी जगह बनाए रखे।
चौधरी देवी लाल की समाधि “संघर्ष घाट” दिल्ली में स्थित है, जो उनकी संघर्षमयी और प्रेरणादायक जीवन यात्रा का प्रतीक है। उनकी मौत के बाद भी, उनका योगदान और उनकी विचारधारा हरियाणा और देश की राजनीति में जीवित है।
उनका जीवन न केवल एक राजनीतिज्ञ के रूप में, बल्कि एक किसान नेता के रूप में भी आदर्श रहा है। उन्होंने किसानों के लिए जो किया, वह हमेशा उनके लिए सम्मान का कारण रहेगा।
आज के समय में भी जब हरियाणा की राजनीति की बात होती है, तो देवी लाल का नाम सबसे पहले लिया जाता है। उनका योगदान और उनकी संघर्षपूर्ण यात्रा हरियाणा और भारत की राजनीति के लिए हमेशा प्रेरणादायक रहेगी।
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